Yada Yada Hi Dharmasya Lyrics In Hindi:- जब हम इस श्लोक को भावुकता और भक्ति के साथ उच्चरित करते हैं, तो हमारी आत्मा में एक अद्वितीय ऊर्जा जागृत होती है। यह ऊर्जा हमें धार्मिकता, न्याय के प्रतीक, और सत्य के पालन के लिए प्रेरित करती है।
यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का उच्चारण करने से हमें अधर्म के विरुद्ध लड़ने की शिक्ति प्राप्त होती है। हम धर्म की संस्थापना के लिए अपने कर्तव्यों को समझने के लिए प्रेरित होते हैं और साधुओं की सेवा और पापों के नाश के लिए उठने की संकल्पित होते हैं।
Yada Yada Hi Dharmasya Lyrics
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि: भवति भारत,
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम्।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्,
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ है
“जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, हे भारतवासियों,
तब-तब मैं अपने आप को प्रकट करता हूँ।
साधुओं के परित्राण के लिए और पापी लोगों के विनाश के लिए,
धर्म की स्थापना के लिए मैं युगों-युगों में अवतार लेता हूँ ।।”
यह श्लोक महाभारत के भगवद्-गीता में भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को बोला गया था। यह श्लोक महत्वपूर्ण है। यह श्लोक भगवत गीता के अध्याय 4, श्लोक 7 में से लिया गया है। इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त अर्जुन को बताते हैं, कि जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तो वे अपने स्वरूप को प्रकट करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि उनका मूल उद्देश्य साधुओं के संरक्षण और पापी लोगों के नाश के लिए धर्म की स्थापना करना है।
यह श्लोक भक्ति, संकट, आशा और प्रेरणा की भावना से भरा हुआ है और हमें यह बताता है, कि भगवान हमारे साथ हर समय हैं और हमेशा हमारे लिए उपस्थित होते हैं।
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